एक खिलाड़ी के जीवन में हमेशा कुछ ऐसे क्षण और दौर आते हैं जो उसे बदल देते हैं और शायद कोरोना महामारी ने हर एक खिलाड़ी को कहीं न कहीं बदल दिया है। पूरे देश में कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन ने ऐसा ही कुछ भारतीय हॉकी टीम के सितारे और ड्रैग फ्लिकर, Rupinder Pal Singh के साथ किया।
कोरोना आया, हॉकी अभ्यास गया
एक तरफ जहाँ भारतीय हॉकी टीम टोक्यो ओलंपिक खेलों की तैयारी कर रही थी, दूसरी तरफ दुनिया की सारी बड़ी खेल प्रतियोगिताएं धीरे-धीरे निलंबित की जा रही थी।
लेकिन जब प्रधानमंत्री Modi ने पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करी, ओलंपिक का न होना लगभग तय था। टोक्यो 2020 से बात करते हुए, Rupinder ने बताया की यह सूचना बेहद चौंका देने वाली थी।
'जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो मैं बेंगलुरु में था और हमें जर्मनी जाना था टूर्नामेंट खेलने पर हमें पता चला की संक्रमण बढ़ रहा था। हमारी एक निगाह ओलंपिक खेलों पर थी और हम चाहते थे की खेल जल्दी से जल्दी हो जाएँ पर ऐसा नहीं हुआ। लेकिन फिर अंत में जब पता चला की ओलिंपिक खेल विलम्बित कर दिए हैं तो हमें समझ आया की स्थिति बहुत गंभीर थी और स्वास्थ्य से ज़्यादा ज़रूरी कुछ नहीं है,' Rupinder ने कहा।
किताबें, Khushwant Singh और 'द सीक्रेट'
हम सभी ने कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन की वजह से कुछ नया करने की कोशिश करी है और Rupinder के लिए वह था किताबें पढ़ना। साहित्य से कभी लगाव न रखने वाले फरीदकोट के इस हॉकी सितारे को लॉकडाउन के दौरान किताबों से दोस्ती कर ली और वह अभी तक बरक़रार है।
'मैं कभी किताबें नहीं पढ़ता था, पर खली समय में मैंने पढ़ना शुरू किया और मुझे काफी अच्छा लगा,' Rupinder ने बताया।
Rhonda Byrne की 'द सीक्रेट' और Khushwant Singh की कुछ किताबें पढ़ के उन्हें इनसे लगाव हो गया, और अब Rupinder यह आदत जारी रखेंगे।
'मैंने प्रेरणा लेने के लिए मानसिक स्थिति पर एक किताब पढ़नी शुरू करी है और बाकी ऑनलाइन मंगा ली हैं,' उन्होंने बताया।
भारत में खिलाड़ी आम तौर पर किताब पढ़ते नहीं पाए जाते पर शायद इस लॉकडाउन में पसीना बहाने वाले Rupinder को साहित्य से लगाव हो गया।
परिवार, पंजाब और माँ के हाथ का खाना
फरीदकोट में रहने वाले Rupinder Pal Singh के माता पिता को लॉकडाउन में अपने बेटे के साथ ऐसा समय बिताने को मिला जो पहले कभी नहीं हुआ था।
'मुझे यह एहसास हुआ की रोज़ के 10 मिनट जो हमारे लिए तो ज़्यादा नहीं होते पर हमारे माँ-बाप के लिए बहुत होते है, और इसी वजह से मुझे परिवार की एहमियत समझ आई,' Rupinder ने टोक्यो 2020 से बात करते हुए कहा।
हालांकि, हॉकी अभ्यास से वंचित Rupinder अपनी माँ के हाथ से बानी खीर, कस्टर्ड और हलवे को मना तो नहीं कर पाते थे पर रोज़ सुबह दौड़ लगा कर अपना वज़न नियंत्रण में रखते थे।
'घर पे रहने की वजह से माँ के हाथ का खाना रोज़ मिलता था पर कभी कभी वह हमारी सेहत के लिए उतना अच्छा नहीं होता और मुझे उनके हाथ का कस्टर्ड और मीठा बहुत पसंद है। आप कोशिश करते हैं की नियंत्रण से खाएं पर नहीं हो पाता है,' वह हस्ते हुए बोले।
इतना ही नहीं, Rupinder ने परिवार के साथ बैठ कर फिल्मों का आनंद उठाया और पूछने पर बताया की Akshay Kumar की 'केसरी' उन्हो बेहद अच्छी लगी।
लॉकडाउन और लक्ष्य टोक्यो
फिटनेस पर खास ध्यान रखने वाले Rupinder ने घर पे एक छोटा जिम बना लिया और वहीँ पर ट्रेनिगं करते उनकी एक नज़र टोक्यो ओलिंपिक पर भी थी।
कोरोना महामारी ने पूरे खेल जगत पर असर किया और हॉकी इससे अछूता नहीं था।
'बुरा ज़रूर लगता है पर आपको पता है पूरी दुनिया के लिए होता है, आपके बस में मेहनत, ट्रेनिंग और वर्तमान रह जाता है,' वह बोले।
संक्रमण थोड़ा बढ़ने के बावजूद हालात सुधर रहे हैं और टोक्यो ओलिंपिक खेलों की तयारी अपनी चरम सीमा पर है। Rupinder को ऐसा लगता है की जो भारतीय टीम जापान जाएगी उसने पिच्छले कुछ सालों में जिस कड़े अभ्यास और जूनून से हॉकी खेली है, 1980 के बाद से ना हासिल हुआ वह पदक जीतने की क्षमता इस दल में है।
'हमने पिछले सालों में बहुत कड़ी मेहनत और खेल में काफी परिवर्तन आया है, न केवल तकनीक में पर हमारी आक्रामकता में भी। मैं 2016 रियो जाने वाली टीम में भी था पर इस बार हम उम्मीद करेंगे की हमारा प्रदर्शन काफी बेहतर हो।'
After a decade of representing the Indian team, I feel disappointed to have missed out on #ArjunaAward.
— Rupinder Pal Singh (@rupinderbob3) August 20, 2020
Fortunately, I don’t have much time to cry over this. So, I’ll put my head down, work hard and channel all my frustration towards improving my craft.
Onwards and upwards. pic.twitter.com/yO5RLd3x5W
अर्जुन पुरस्कार और 'मिशन 2024'
हाल ही में घोषित किये गए अर्जुन पुरस्कार विजेताओं की सूची में Rupinder का नाम नहीं था और इसका खेद उन्होंने ट्विटर पर पूरे दिल से प्रकट किया था। इस बात कहने में उन्हें कोई संकोच नहीं है की उन्हें दुख पहुंचा लेकिन उनका आत्मविश्वास कम नहीं हुआ।
'मुझे पता नहीं चयन समिति के निर्णय के पीछे क्या कारण था पर मेरा काम हॉकी खेलना है और वह मैं करता रहूँगा, कोई पुरस्कार मिले या न मिले,' वह बोले।
Rupinder और भारतीय हॉकी टीम की निगाह अब टोक्यो ओलिंपिक पर होंगी और 2021 में 1980 के बाद से पदक से वंचित अपने देश को कामयाबी दिलाना ही उनका लक्ष्य है। लेकिन अगर 'Bob' की माने तो उनकी फिटनेस उन्हें 2024 ओलिंपिक खेलों में भाग लेने में सफल कर सकती है।