टोक्यो 1964
जापान के पुनर्जन्म और संघर्ष की कहानी
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वर्ष 1964 के अक्टूबर महीने में टोक्यो ने पहली बार ओलिंपिक खेलों की मेज़बानी करि थी और हम आपको बताएंगे उस प्रतियोगिता के कुछ ऐतिहासिक क्षण जो 56 साल बाद आज भी याद किये जाते हैं। इस श्रंखला के अंतिम भाग में हम आपको बताएँगे कि 1964 टोक्यो ओलिंपिक खेलों ने पूरे विश्व पर एक छाप छोड़ी।
आज से 56 वर्ष पहले टोक्यो ने पहली बार ओलिंपिक खेलों की मेज़बानी करि थी और आज के समय में बहुत से विशेषज्ञ इसे जापान की प्रगति में एक बहुत महत्वपूर्ण मोड़ था। टोक्यो खेलों में जापान ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुए विनाश और तबाही से उभर कर एक संयुक्त वैश्विक शक्ति के रूप में उभर कर आयी।
टोक्यो राष्ट्रीय स्टेडियम कि सीढ़ियों पर चढ़ के जब SAKAI Yoshinori ने अपने हाथों में पकड़ी मशाल से उस डेग को जलाते हुए टोक्यो ओलिंपिक खेलों कि शुरुआत के साथ जापान के नए जन्म का ऐलान भी किया।
एक परिवर्तित जापान ने विश्व के सामने विश्वास, सभ्यता और आधुनिक नेतृत्व का प्रदर्शन किया और टोक्यो खेलों में अनेक वैज्ञानिक नवोन्मेषों के बारे में पूरे संसार को अवगत कराया।
टोक्यो फिर से 56 साल बाद ओलिंपिक खेलों की तैयारी कर रहा है और वह भी ऐसे समय में जब विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। इस समय टोक्यो ओलिंपिक खेल पूरे विश्व के लिए सहनशीलता और संघर्ष का प्रतीक बनेंगे।
मार्च 2020 में हुई टोक्यो 2020 खेलों की ओलिंपिक मशाल प्रकाशन समारोह में बात करते हुए अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष Thomas Bach ने कहा था, "साल 1964 में एशिया में आयोजित ओलिंपिक खेलों ने जापान को विश्व के परिवार में एक नई शुरुआत मिली और मेरा विश्वास है कि टोक्यो 2020 खेल जापान के लोगों के लिए उम्मीद और विश्वास का प्रतीक बनेगा।"
लेकिन क्या थे वह आधुनिक बदलाव जिन्होंने जापान को परिवर्तित कर दिया? आइये हम आपको बताते हैं टोक्यो 1964 की विरासत के कुछ महत्वपूर्ण पहलु।
टोक्यो 1964 ओलिंपिक खेलों के आयोजकों ने आधुनिकता पर खास ध्यान दिया था। उपग्रह प्रसारण से लेकर रंगीन टेलीविज़न तक और मोनोरेल से लेकर बुलेट रेलगाड़ी तक, टोक्यो इन खेलों के माध्यम से आधुनिकता का केंद्र बन चुका था।
प्रसारण में आधुनिकता के पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ा कदम था और आगे चल कर इसका बहुत जगह प्रयोग किया गया। उपग्रह की आधुनिकता के प्रयोग कि वजह से एक तिहाई विश्व को ओलिंपिक खेलों का सीधा प्रसारण देखने का मौका।
खिलाडियों के पास रहने वाले माइक से आने वाली ध्वनियाँ और धीमी गति वाले रीप्ले से खेल देखने वालों को बहुत आनंद मिला और कंप्यूटर के सौजन्य से दर्शकों को प्रतियोगिताओं का समय देखने को मिला। हालांकि बहुत से दर्शंकों ने यह प्रसारण ब्लैक एंड वाइट में देखा, कुछ समारोह और प्रतियोगितााओं का प्रसारण विश्व इतिहास में पहली बार कलर में हुआ।
बहुत अन्य आधुनिकताएँ भी टोक्यो 1964 खेलों में देखे गए जैसे समय का और बारीकी से अभिलेख होना और एक बेहतर कैमरा। इसके साथ ही ओलिंपिक इतिहास में पहली बार अलुमिनियम की जगह हलके और लचीले खम्बों का प्रयोग किया गया।
इतिहास में पहली बार ओलिंपिक खेलों में ग्राफ़िक रचनाओं का प्रयोग कर बहुत सी चुनौतियों को हराया गया और यह आने वाले दशकों के लिए उदहारण बना। टोक्यो 1964 ओलिंपिक खेलों में इतिहास में पहली बार पिक्टोग्राम का प्रयोग किया गया और आने वाले हर खेलों पर इनका इस्तेमाल हुआ। टोक्यो 2020 ओलिंपिक खेलों ने इस विरासत को और आगे बढ़ाते हुए गतिज पिक्टोग्राम की रचना करि है।
टोक्यो 1964 ओलिंपिक खेलों के आयोजकों ने जापान के पारम्परिक राष्ट्रीय प्रतीक की जगह नयी और आधुनिक रचनाओं का प्रयोग किया। जापान के मशहूर डिज़ाइनर KAMEKURA Yusaku को ओलिंपिक खेलों कि रूप रेखा कि रचना करने का उत्तरदायित्व दिया गया और उन्होंने अपनी कुशलता का प्रयोग करते हुए एक बहुत ही अनोखा खेल प्रतीक बनाया।
टोक्यो 1964 खेलों की विरासत की शुरुआत प्रतियोगिता से पहले ही हो चुकी थी और जैसे ही खेलों की मेज़बानी करने के लिए जापान की राजधानी को चुना गया, सर्कार और आयोजन समिति ने कार्य का एक नए प्रतीक की रचना करि। इसी कारण टोक्यो शहर में नए घर, होटल, पार्क और बेहतर जलापूर्ति के लिए कार्य आरम्भ कर दिया गया।
पूरे शहर में सडकों और रेल व्यवस्था को भी सुधारा गया जिसकी वजह से टोक्यो और ओसाका के बीच जो शिनकानसेन तेज़-गति वाली लाइन थी उसका उद्घाटन खेलों के शुरू होने से नौ दिन पहले किया गया। वह 'बुलेट ट्रैन' उस समय दुनिया की सबसे तेज़ रेलगाड़ी थी और बाद में जा कर वह जापान के और भागों में भी पहुंची।
टोक्यो शहर में अन्य भी बहुत परिवर्तन किये गए और विश्व में पहली बार मोनोरेल को आम जनता के लिए प्रयोग किया गया। वर्ष 2019 के आंकड़ों के मुताबिक टोक्यो मोनोरेल में हफ्ते के एक दिन में तीन लाख लोग सफर करते हैं। इतना ही नहीं, ओलिंपिक खेलों के कारण टोक्यो की भूमिगत रेल, मेट्रोपोलिटन एक्सप्रेसवे और एक विशाल रोड व्यवस्था का निर्माण हुआ जिसके कारण दुनिया के सबसे बड़े शहर की कई समस्याएं हल हो गयी।
योयोगी राष्ट्रीय स्टेडियम ने तैराकी, डाइविंग और बास्केटबॉल प्रतियोगिताओं की मेज़बानी करि और वह विश्व के सर्वश्रेष्ठ खेल परिसरों में से एक है। इस परिसर की रचना अनोखी है और परिसर की छत पारम्परिक जापानी वास्तु-कला और पश्चिमी सुंदरता का मिश्रण था। यह स्टेडियम आज भी कई प्रतियोगिताओं की मेज़बानी करता है और कई कार्य्रक्रम भी यहाँ आयोजित होते हैं।
टोक्यो 1964 ओलिंपिक खेलों के प्रतियोगिता स्थल आज भी सक्रीय हैं और उनमें से छह टोक्यो 2020 की सूची में भी शामिल हैं।
टोक्यो 1964 ओलिंपिक खेलों की विरासत में कई खिलाड़ियों के कारनामे भी शामिल हैं।
जापान की महिला वॉलीबॉल टीम ने प्रबल दावेदार सोवियत संघ को हरा कर ओलिंपिक स्वर्ण अपने नाम किया। टोक्यो ओलिंपिक खेलों के प्रसारण के दौरान इस प्रतियोगिता को अन्य किसी खेल के फाइनल से ज़्यादा देखा गया और वॉलीबॉल कि लोकप्रिय भी बढ़ गयी। इतना ही नहीं, उस जापानी महिला टीम ने एक नयी पीढ़ी को प्रेरित किया और आने वाले सालों में जापान ने 1968 मेक्सिको, 1972 म्युनिक, 1984 लॉस एंजेलेस और 2012 लंदन ओलिंपिक खेलों में पदक जीते।
फुटबॉल की जापान में लोकप्रियता के लिए टोक्यो खेलों का महत्वपूर्ण योगदान है और राष्ट्रीय टीम ने अर्जेंटीना को ग्रुप दौर में 3-2 से हराया। ओलिंपिक खेलों के एक साल बाद जापान सॉकर लीग की स्थापना की गयी थी।
इन सारे खेलों की सफलता में कहीं न कहीं जापानी "कोंजो" भाव को एक नवजीवन और राष्ट्रीय स्तर पर नई मान्यता मिली। इस भाव का सबसे बड़ा उदाहरण थे TSUBURAYA Kokichi जिन्होंने पुरुषों की मैराथन में कांस्य पदक जीता।
टोक्यो ओलिंपिक खेलों के कारण पूरे जापान में कई खेल केंद्र स्थापित किये गए और आम जनता के जीवन में खेल को अधिक महत्त्व दिया गया।
जापानी सरकार वर्ष 1961 में खेल को बढ़ावा देने के लिए एक नया अधिनियम ले कर आई और राष्ट्रीय स्तर पर एक आंदोलन की शुरुआत करी। जापान जूनियर खेल क्लब संघ ने पूरे देश में साल 2018 तक 650000 युवाओं की सहायता करि है।
टोक्यो 1964 ओलिंपिक खेलों ने जापान की राष्ट्रीय एकता में बहुत बड़ा योगदान दिया है और टेलीविज़न प्रसारण ने इस प्रतियोगिता को विश्व स्तर पर एक नयी परिभाषा दी।