हॉकी
गुरजीत कौर: ड्रैग फ्लिक की दुनिया में भारत की एक अकेली सूरमा
लिंक साझा करें:
व्हाट्सऐप
आपका रेफरल लिंक:
भारतीय महिला हॉकी टीम में अपनी जगह पक्की करने के लिए ड्रैग फ्लिक को चुनने वाली युवा डिफेंडर आज दुनिया में इस कला की सबसे उम्दा खिलाड़ी हैं।
ड्रैग फ्लिक को आज की आधुनिक हॉकी का एक जरूरी हिस्सा माना जाता है। यही वजह है कि फ़ील्ड गोल को रोकने के लिए अपनी रक्षात्मक संरचना को दुरुस्त और बेहतर करने में टीमें घंटों अपना समय बिताती हैं। वहीं, पेनल्टी कॉर्नर गोल करने के लिए थोड़ा आसान तरीका माना जाता है।
और देखा जाए तो इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता है कि दौड़कर अंदर घुसने के बजाए गेंद को स्कूप करते हुए फ्लिक करके 130 किलो मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दिशा दी जाए।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टीमों में आमतौर पर एक से अधिक पेनल्टी कॉर्नर स्पेशलिस्ट होते हैं। नीदरलैंड में काइया वैन मासाक्केर (Caia van Maasakker) और यिब्बी जैनसेन (Yibbi Jansen), ओलंपिक चैंपियन ग्रेट ब्रिटेन में ग्रेस बाल्स्डन (Grace Balsdon) और लॉरा अन्सवर्थ (Laura Unsworth) हैं। वहीं ऑस्ट्रेलिया में एडविना बोन (Edwina Bone), जोडी केनी (Jodie Kenny) और कैरी मैकमोहन (Karri McMahon) हैं।
लेकिन महिलाओं की भारतीय हॉकी टीम के अंदर गुरजीत कौर लंबे समय से इस मोर्चे को सम्भालने वाली एक अकेली योद्धा रही हैं।
2017 में भारतीय महिला हॉकी टीम में खुद को स्थापित करने के बाद से गुरजीत कौर न केवल भारत के डिफेंस में एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन गई हैं। इसके साथ ही वह शॉर्ट कॉर्नर की एक अद्भुत गोल स्कोरर हैं।
चाहे 2018 एशियाई खेलों की बात करें, जहां भारत ने जापान में एक रजत पदक जीता या एफआईएच सीरीज फाइनल की बात करें, जहां गुरजीत कौर शीर्ष स्कोरर (11 गोल) रहीं। भारतीय ड्रैग फ्लिकर टीम का एक जरूरी हिस्सा रही हैं।
लेकिन कुछ सालों पहले तक ऐसा नहीं था। वास्तव में गुरजीत कौर अपनी मर्जी से नहीं बल्कि अचानक ही इस खेल से जुड़ गई थीं।
अमृतसर के मिआदी कलान के एक किसान परिवार में जन्मी गुरजीत कौर के परिवार के लिए हॉकी किसी एलियन के जैसा था। और उनके पिता सतनाम सिंह के लिए शिक्षा हमेशा पहली प्राथमिकता थी।
गुरजीत और प्रदीप दोनों बहनों ने अपने शुरुआती साल अपने गांव के पास के एक निजी स्कूल में बिताए और उसके बाद लगभग 70 किलोमीटर दूर तरनतारन जिले के कैरन में एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिला ले लिया।
यहीं पर उन्होंने हॉकी की ओर रुख किया था। गुरमीत कौर ने ओलंपिक चैनल को बताया, “हम बस कुछ नया करने की कोशिश करना चाहते थे। मुझे नहीं पता था कि यह क्या खेल है, लेकिन यह मज़ेदार था। मेरे परिवार से किसी ने भी हॉकी नहीं खेली थी। इसलिए लड़कियों को खेलता हुआ देखकर हम भी उनसे जुड़ना चाहते थे।”
देश में महिला हॉकी के लिए नए खिलाड़ियों को तैयार करने के रूप में माने जाने वाले गवर्नमेंट गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दोनों बहनों ने जल्द ही अपने जुनून को पा लिया और छात्रवृत्ति हासिल करने के लिए खूब मेहनत की। इससे उन्हें मुफ्त स्कूली शिक्षा और बोर्डिंग की सुविधा मिली।
गुरजीत कौर ने स्कूल के दिनों के बाद भी हॉकी के अपने जुनून को जारी रखा। इसके बाद उन्होंने जालंधर के लायलपुर खालसा कॉलेज फॉर वुमेंस में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया और इस युवा खिलाड़ी ने जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली। साल 2014 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय शिविर में बुला लिया गया।
डिफेंडर के तौर पर कोई ख़ास हुनर न होने के चलते पंजाब की खिलाड़ी तीन वर्षों तक राष्ट्रीय शिविर में प्रवेश के लिए अपने बुलावे का इंतज़ार करती रही। तभी गुरजीत कौर को एहसास हुआ कि उन्हें किसी खास चीज़ की तलाश करनी चाहिए।
गुरजीत ने कहा, “भारत के लिए खेलने में कुछ तो ख़ास लगता है। मैं पहले भी ड्रैग फ्लिक करने की कोशिश करती थी, लेकिन मैं इसके बारे में बहुत अधिक नहीं जानती थी। मेरे स्कूल और कॉलेज के दिनों में मैंने कई वीडियो में जो भी देखा था बस उसी की नकल करने की कोशिश कर रही थी।”
"लेकिन राष्ट्रीय शिविर के शुरुआती वर्षों में मुझे मूल बातें, तकनीकें सीखने में मदद मिली। जैसे कि क्या अलग है, क्या अलग नहीं... इसलिए मैंने इसे अपना एक्स-फैक्टर बनाने का फैसला किया।"
हालांकि, भारत में कोई भी महिला खिलाड़ी इस तक नहीं पहुंची थी, यह गुरजीत कौर के लिए ही बाकी था। हालांकि उन्होंने काफी वीडियो देखे, लेकिन जब तक कि टीम ने 2017 में यूरोप का दौरा नहीं किया, तब तक उन्हें फर्स्ट-हैंड ट्रेनिंग का मौका नहीं मिला।
नीदरलैंड में गुरजीत कौर को टून सीपमैन के साथ काम करने का मौका मिला, एक ड्रैग फ्लिक गुरु जिन्होंने पाकिस्तान के सोहेल अब्बास और डचमैन मिंक वैन डेर वीरडेन जैसे महान खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया। भारतीय डिफेंडर का मानना है कि सीपमैन के साथ बिताए गए सप्ताह ने उनके ड्रैग फ्लक को बेहतर करने में काफी मदद की है।
“उनके साथ मेरे कुछ बेहतरीन पल बीते थे। हालांकि मुझे फ्लिकिंग के बारे में कुछ चीज़ें मालूम थीं, उन्होंने (टून सीपमैन) मुझे हर मिनट हर एक चीज़ विस्तार से सिखाई, तकनीक बताई। मेरे खड़े होने के तरीके या मेरे फुटवर्क या फ्लिक करने से पहले जिस तरह से मैं अपनी कमर को मोड़ते हूं... उन्होंने बस मुझसे थोड़े बदलाव करने को कहे और परिणाम पूरी तरह बदल गए।"
अपने डच दौरे से लौटने के बाद गुरजीत कौर ने अपनी तकनीक को एक बार फिर से बदल दिया, इस बार तत्कालीन मुख्य कोच हरेंद्र सिंह ने उनके फ्लिक में और अधिक ताकत को जोड़ने का काम किया।
Making her debut in 2017, Gurjit Kaur has come a long way as a reliable custodian in the defence of the Indian Women’s Hockey Team. Her exemplary ball-control ability and superb drag-flick streak make her a powerful force in the team. #KnowTheEves #IndiaKaGame pic.twitter.com/FM13AxWM2D
— Hockey India (@TheHockeyIndia) January 25, 2019
2017 एशिया कप में उन्हें काफी कुछ सीखने में मदद मिली, जहां गुरजीत ने आठ गोल करके भारत को चीन के खिलाफ खिताब जीतने में मदद की। उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बीते वर्षों में गुरजीत कौर भारतीय महिलाओं की हॉकी टीम में एकमात्र ड्रैग फ्लिक स्पेशलिस्ट रही हैं। हालांकि, अभी भी एक बेहतरीन बैक-अप खिलाड़ी का अभाव है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसने उन्हें कुछ मौकों पर काफी परेशान किया है, लेकिन भारतीय डिफेंडर को इसकी कोई ख़ास चिंता नहीं है।
गुरजीत ने तर्क देते हुए कहा, “मैं इसे एक नुकसान के तौर पर नहीं देखती। मुझे लगता है कि हर खिलाड़ी अपने विशेष तरीके से टीम में शामिल होता है। हमारे पास एक ड्रैग फ्लिकर है, जबकि कुछ अन्य लोग फ्लैट हिट कर सकते हैं। यह पेनल्टी कॉर्नर से एक विकल्प के तौर पर होने में मदद करता है।”
लेकिन सीनियर टीम से कुछ खिलाड़ी नियमित तौर पर ड्रैग फ्लिक के सबक लेती रहती हैं, इसलिए कुछ समय बाद भारत की महिला हॉकी टीम में कई ड्रैग फ्लिक खिलाड़ी अपने हुनर का शानदार प्रदर्शन करते हुए दिखाई दे सकती हैं।
ओलिंपिक चैनल द्वारा