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खून, पसीना और ओलिंपिक पदक: Yogeshwar Dutt की ऐतिहासिक जीत
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भारत के ओलिंपिक इतिहास में व्यक्तिगत पदक जीतने वालों की सूची में कई महान खिलाड़ी शामिल हैं जिनकी कहानी खेल प्रेमियों को आज भी याद हैं। टोक्यो 2020 हर सप्ताह आपको बताएगा भारत के व्यक्तिगत पदक विजेताओं की कहानी और इस भाग में हम आपको बताएँगे कैसे हरयाणा के पहलवान Yogeshwar Dutt ने भारत को दिलाया लंदन ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक।
भारत के पहलवानी इतिहास में कई लोकप्रिय पहलवान रहे हैं और उनकी कहानियों ने लाखों युवाओं को प्रेरित किया है लेकिन बहुत कम ऐसे हैं जो Yogeshwar Dutt का मुकाबला कर सकते हैं। खून, पसीना और बहुत सारा कष्ट सहने के बाद ही हरयाणा के इस पहलवान ने भारत के लिए ओलिंपिक पदक अपने नाम किया।
Dutt ने अपना खेल सफर सिर्फ सात साल की आयु में शुरू कर दिया था और भारत के लिए पहलवानी का केंद्र माने जाने वाले हरयाणा के सोनीपत जिले के एक गाँव में पहली बार उन्होंने अखाड़े में कदम रखा। हरयाणा एक ऐसा राज्य है जहाँ हर दूसरा बच्चा पहलवानी में रूचि रखता है लेकिन Yogeshwar की प्रतिभा शुरू से ही अन्य पहलवानों से एक स्तर ऊपर थी।
ओलिंपिक खेलों में पदक जीतने की प्रेरणा Yogeshwar को टेनिस खिलाड़ी Leander Paes से मिली। भारत के इतिहास का पहला टेनिस ओलिंपिक पदक Yogeswhar Dutt के जीवन में एक बहुत महत्वपूर्ण घटना थी।
Paes द्वारा 1996 एटलांटा खेलों में जीते गए कांस्य पदक के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया, "मुझे ओलिंपिक खेलों के बारे में 1996 में पता चला। मैंने Leander Paes को टीवी पर देखा और अपने पिता से उनके बारे में पूछा था। टीवी पर आना किसी भी खिलाड़ी के लिए उस समय बड़ी बात होती थी।"
अपनी प्रतिभा और मेहनत के कारण Yogeshwar ने पहलवानी की दुनिया में बहुत जल्दी नाम कमा लिया और 21 वर्ष की आयू में पहली बार ओलिंपिक खेलों में हिस्सा लिया। एथेंस में आयोजित 2004 ओलिंपिक खेलों में उनके हाथ सफलता तो नहीं लगी लेकिन उस अनुभव से उनका निश्चय और भी ज़्यादा दृढ हो गया था।
अगले कुछ सालों में Dutt ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते जिनमें 2005 अथवा 2007 कॉमनवेल्थ पहलवानी चैंपियनशिप (स्वर्ण) और 2006 एशियाई खेल (कांस्य) पदक शामिल थे। साल 2006 उनके खेल जीवन के लिए तो अच्छा रहा लेकिन उन्होंने अपने पिता को खो दिया जो Yogeshwar के लिए बहुत ही ज़्यादा दुःख का क्षण था।
चीन की राजधानी बीजिंग में आयोजित हुए 2008 ओलिंपिक खेलों में Yogeshwar Dutt ने अच्छी शुरुआत करि और क्वार्टरफाइनल में अपनी जगह बना ली। उनका सामना जापान के Kenichi Yumoto से हुआ और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा वहीँ दूसरी तरफ उनके मित्र और साथी Sushil Kumar ने भारत के लिए दूसरा पहलवानी पदक जीता। इस घटना ने Dutt का पदक जीतने का निश्चय और दृढ कर दिया।
बीजिंग में हार के बारे में Dutt ने कहा, "मैंने 2008 ओलिंपिक खेलों के लिए बहुत अच्छे से तैयारी करि थी और अंत में मैं सिर्फ एक अंक से हार गया। उसी क्षण मैंने अपने देश के लिए अगले ओलिंपिक खेलों में पदक जीतने का निर्णय कर लिया था।" चार साल बाद लंदन में ऐसा ही हुआ।
ओलिंपिक पदक पटल तक Yogeshwar Dutt का सफर आसान नहीं था और 2009 में उन्हें घुटने में एक गहरी चोट लगी। उन्होंने 2010 कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किया लेकिन पीठ में लगी एक चोट के कारण वह फिर से छह महीनों के लिए बाहर हो गए। एक बार फिर वापसी करते हुए Yogeshwar ने 2012 में ओलिंपिक खेलों से पहले एशियाई पहलवानी चैंपियनशिप में पदक जीता।
लंदन में Dutt की शुरुआत बहुत अच्छी रही और उन्होंने बुल्गारिया के Anatolie Ilarionovitch Guidea को 3-1 से परास्त किया लेकिन उन्हें रूस के विश्व चैंपियन Besik Kudukhov के सामने हार का सामना करना पड़ा। उन्हें पदक जीतने का एक और मौका मिला जब Kudukhov 60 किग्रा फ्रीस्टाइल प्रतियोगिता के फाइनल में पहुँच गए।
रेपेचाज के प्रथम राउंड में उन्होंने पुएर्तो रीको के Franklin Gomez को हराया और अगले मुकाबले में ईरान के Masoud Esmaeilpour को पराजित किया। दो मैच जीतने के बाद Dutt पदक से बस एक जीत दूर थे और कांस्य जीतने के लिए उनका मुकाबला उत्तर कोरिया के Ri Jong-Myong से हुआ। दस साल की मेहनत, खून और पसीना बहाने के बाद Yogeshwar इस अवसर को नहीं जाने देने वाले थे।
Ri Jong-Myong ने Yogeshwar को मुकाबले के पहले राउंड में हराया लेकिन भारत के पहलवान ने शानदार वापसी करते हुए दुसरे राउंड को जीत कर मैच बराबर कर दिया। तीसरे और आखरी राउंड में Yogeshwar ने बेहतरीन पैंतरे दिखाते हुए मुकाबला जीत लिया और कांस्य पदक अपने नाम किया। घुटने में लगी हुई चोट और एक सूजी हुई आँख के बाद भी उन्होंने पदक जीतने की ख़ुशी में कलाबाज़ी करि। उनका सपना सच हो चुका था।
Yogeshwar Dutt ओलिंपिक खेलों में पदक जीतने के बाद एक राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बन गए और उनकी सफलता से हज़ारों युवा पहलवान प्रेरित हुए। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना अच्छा प्रदर्शन बरक़रार रखा और 2014 कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। उसी वर्ष उन्होंने एशियाई खेलों में स्वर्ण जीता और अपने वर्ग में विश्व के सबसे कुशल पहलवानों में से एक बन गए।
अपने खेल जीवन के चौथे और अंतिम ओलिंपिक खेलों में Yogeshwar Dutt को पहले ही राउंड में पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन वह आज भी भारत के इतिहास में सबसे महँ पहलवानों में से एक हैं। उनकी महानता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि टोक्यो 2020 ओलिंपिक खेलों में भारत के पदक दावेदार पहलवान Bajrang Punia Yogeshwar Dutt को अपना आदर्श मानते हैं।
Yogeshwar Dutt लंदन में पदक जीतने के आठ साल बाद भी भारत में एक लोकप्रिय व्यक्ति हैं और जब भी राष्ट्रिय स्तर पर पहलवानी के बारे में चर्चा होती है तो उनका और Sushil Kumar का नाम सबसे पहले लिया जाता है।